नमस्कार दोस्तों, आज हम बात करेंगे एक खास फलदायी व्रत के बारें में जिसे आमलकी यानि आँवला एकादशी कहते है| यह फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है| यह एकादशी व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है|
दोस्तों आमलकी का मतलब आँवला होता है, आँवला का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है| आंवले के पेड़ में भी देवताओं का वास होता है| आमलकी एकादशी का व्रत करने से सभी यज्ञों के बराबर फल मिलता है| इस व्रत में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है| साथ ही एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन विशेष रूप से किया जाता है| इसलिए इस दिन खासतौर से विष्णु जी की पूजा में आंवले को शामिल किया जाता है| इस दिन जो व्यक्ति आँवला खाता है, उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है|
दोस्तों आमलकी का मतलब आँवला होता है, आँवला का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है| आंवले के पेड़ में भी देवताओं का वास होता है| आमलकी एकादशी का व्रत करने से सभी यज्ञों के बराबर फल मिलता है| इस व्रत में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है| साथ ही एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन विशेष रूप से किया जाता है| इसलिए इस दिन खासतौर से विष्णु जी की पूजा में आंवले को शामिल किया जाता है| इस दिन जो व्यक्ति आँवला खाता है, उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है|
आंवले के वृक्ष के बारें में विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के समान एक बिंदु प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा, उसी बिंदु से आमलक यानि आँवला के महान वृक्ष की उत्पत्ति हुई| यही कारण है कि विष्णु जी की पूजा में इस फल का प्रयोग किया जाता है| इस व्रत का पुण्य एक हजार गौदान के फल के बराबर है| जो व्यक्ति व्रत नहीं करते है वो भी इस दिन भगवान विष्णु को आँवला अर्पित करें और स्वयं भी खाये, इससे पुण्य फल की प्राप्ति होती है|
आँवला एकादशी के दिन सुबह उठकर स्न्नान करके भगवान विष्णु जी की मूर्ति या फोटो के सामने बैठकर हाथ में तिल, कुश, मुद्रा यानि दक्षिणा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें, तत्पश्चात भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें, और इसके बाद आंवले के वृक्ष की पूजा करें| सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ़ सुथरा करें, और उसे गाय के गोबर से या गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें| पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उसपर एक कलश स्थापित करें| कलश में सुगंधी और पंचरत्न रखें, इसके ऊपर पांच पल्लव यानि पांच आम के पत्ते रखें फिर दीपक जलाकर रखें| कलश पर चन्दन का लेप लगाए, एवं वस्त्र पहनाये, इसके बाद विष्णु जी के छठे अवतार परशुराम जी की स्वर्ण या मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से पूजा करें| रात्रि जागरण कर भजन और कीर्तन करें|
फिर अगले दिन यानि द्वादशी को स्न्नान कर विष्णु जी की पूजा कर ब्राम्हण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा देकर साथ ही परशुराम जी की मूर्ति सहित कलश भेंट करें इसके पश्चात ही व्रत का परायण कर भोजन ग्रहण करें|